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"सीने में गोली, जान का खतरा – कैसे 'छोटे सरकार' (अनंत सिंह) ने मौत को मात दी?"
बिहार के मोकामा क्षेत्र के बाहुबली नेता और पूर्व विधायक अनंत सिंह, जिन्हें "छोटे सरकार" के नाम से भी जाना जाता है, एक बार फिर मौत के मुंह से बाहर निकल आए। 22 जनवरी को उनके काफिले पर कुख्यात सोनू-मोनू गैंग के बीच हुए गैंगवार के दौरान 50-60 राउंड फायरिंग की गई, लेकिन अनंत सिंह बाल-बाल बच गए। इस हमले के बाद नौरंगा गांव को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया और पुलिस ने इस मामले में तीन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। हालांकि, यह कोई नई घटना नहीं है—अनंत सिंह कई बार मौत के मुंह से बाहर आ चुके हैं।
अनंत सिंह और विवेका पहलवान के बीच की दुश्मनी किसी से छुपी नहीं है। दोनों गोतिया हैं, लेकिन उनके बीच जो खून-खराबा हुआ, उसने मोकामा की गलियों में लाशों का खेल खेला। कहा जाता है कि अनंत सिंह के बड़े भाई फाजो सिंह की हत्या के बाद, अनंत ने विवेका पहलवान के गैंग के कई सदस्यों को मार गिराया, जिससे विवेका पहलवान बेहद नाराज हो गया और उसने अनंत सिंह को मारने का फैसला किया।
साल 2004 में अनंत सिंह अपने 30 साथियों के साथ अपने गांव में घर की छत पर सोए हुए थे, तभी उन पर जानलेवा हमला हुआ। इस हमले में गोली उनकी पीठ में लगी और वह सीने तक पहुंच गई। अनंत को खजांची रोड के आलोक नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टर नरेंद्र सिंह ने उनका इलाज किया। अस्पताल में एक अनजान फोन आया जिसमें धमकी दी गई कि यदि अनंत का ऑपरेशन हुआ तो डॉक्टरों की जान ले ली जाएगी। इस धमकी के बावजूद, अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह ने अस्पताल के बाहर बंदूकधारियों का पहरा तैनात किया और ऑपरेशन अपने देखरेख में कराया, जो सफल रहा।
एक और हमला हुआ जब अनंत सिंह पर स्टेडगन से गोलियों की बौछार की गई। इस बार उन्होंने अपने भाई दिलीप सिंह की जान बचाने के लिए सारी गोलियां अपने हाथों पर झेल ली। इस हमले के बाद अनंत के हाथ में स्टील का रॉड लगाना पड़ा, लेकिन उनकी जिंदादिली और साहस ने उन्हें एक बार फिर मौत को मात देने का मौका दिया।
अनंत सिंह की जिंदगी में संघर्ष और खून-खराबा हमेशा था, लेकिन उनका जुझारूपन और मौत से बचने की क्षमता उन्हें बिहार की राजनीति का एक अहम चेहरा बनाती है। उनके खिलाफ जितने भी हमले हुए, उन्होंने हर बार मौत को चुनौती दी और फिर से खड़े हो गए। अनंत सिंह का जीवन एक ऐसी कहानी है जो संघर्ष, प्रतिशोध और मौत से जूझते है।
क्या इस बार भी अनंत सिंह हर हमले से बचकर लौटेंगे?
यह सवाल बिहार की राजनीति में गरमाया हुआ है, लेकिन एक बात तो साफ है—अनंत सिंह मौत को मात देकर फिर से खड़े होते हैं, और उनका संघर्ष कभी खत्म नहीं होता!
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