सुनील सिंह की एमएलसी कुर्सी पर संकट, 'पलटूराम' शब्द के विवाद में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई!
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**सुनील सिंह की एमएलसी कुर्सी पर संकट, 'पलटूराम' शब्द के विवाद में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई**
बिहार के राजद नेता सुनील कुमार सिंह की एमएलसी (विधान परिषद सदस्य) की कुर्सी संकट में पड़ती जा रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ ‘पलटूराम’ शब्द का इस्तेमाल करने के मामले में उनके खिलाफ की गई कार्रवाई अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुकी है। बिहार विधान परिषद ने उन्हें कदाचार के आरोप में सदन से निष्कासित कर दिया था। इस फैसले को चुनौती देने के लिए सुनील सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है, और अब इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है।
**सुप्रीम कोर्ट में क्या दलील दी गई?**
16 जनवरी 2025 को, बिहार विधान परिषद की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि सुनील कुमार सिंह ने न तो आचार समिति की बैठकों में हिस्सा लिया और न ही उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ अपनी टिप्पणियों पर कोई अफसोस जताया। उनके द्वारा की गई टिप्पणी गंभीर थी, और इससे सदन की गरिमा को नुकसान पहुंचा था। वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने न्यायालय में यह दलील दी कि सुनील सिंह ने मुख्यमंत्री के खिलाफ जो टिप्पणी की, उसके बाद उन्होंने किसी भी कानूनी प्रक्रिया को अपनाने की बजाय सिर्फ विरोध किया और इसका कोई अफसोस भी नहीं जताया।
**किसी अन्य सदस्य की टिप्पणी का मुद्दा**
हालांकि, इस मामले में सुनील सिंह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी अपनी दलील दी। उन्होंने कहा कि केवल सुनील कुमार सिंह को ही निष्कासित किया गया, जबकि बिहार विधान परिषद के अन्य सदस्य ने भी ‘पलटूराम’ शब्द का इस्तेमाल किया था। उनका कहना था कि सिर्फ एक सदस्य के खिलाफ कार्रवाई क्यों की गई, जबकि अन्य को केवल निलंबित किया गया था।
सिंघवी ने यह भी बताया कि उनकी ओर से की गई टिप्पणी पर किसी भी सदस्य ने खेद नहीं जताया था, जो आचार समिति की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया था। इसके बावजूद, उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
**आचार समिति का गठन और सुनील सिंह का रुख**
आचार समिति की ओर से यह भी कहा गया कि सुनील सिंह ने समिति के गठन पर सवाल उठाए थे और आचार समिति की बैठकों में भी हिस्सा नहीं लिया। समिति की रिपोर्ट में यह कहा गया कि जब आरोपों का जवाब देने का अवसर दिया गया, तब सुनील सिंह ने कोई खेद नहीं जताया। उनका रुख अड़ियल था और उन्होंने अपनी टिप्पणी पर कोई पछतावा नहीं दिखाया।
**सुप्रीम कोर्ट का रुख**
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि किसी समिति के गठन पर सवाल उठाना और उसमें हिस्सा न लेना कदाचार नहीं माना जा सकता, लेकिन अगर किसी सदस्य ने अपनी टिप्पणी पर खेद नहीं जताया, तो यह गंभीर मामला हो सकता है। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई को 20 जनवरी तक के लिए टाल दिया और निर्वाचन आयोग से बिहार विधान परिषद की उस सीट के उपचुनाव के परिणामों की घोषणा पर भी रोक लगा दी।
**क्या है पूरा विवाद?**
यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब 13 फरवरी 2024 को बिहार विधान परिषद में सुनील कुमार सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की थी। आरोप था कि उन्होंने विधानसभा में नीतीश कुमार के खिलाफ नारे लगाए थे। इसके बाद बिहार विधान परिषद की आचार समिति ने इस मामले की जांच की और उनकी टिप्पणी को अनुचित करार देते हुए उन्हें निष्कासित कर दिया। इसके बाद सुनील सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में यह मामला चुनौती दी और उन्होंने अपना बचाव करने की कोशिश की।
**क्या हो सकता है आगे?**
अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की अंतिम सुनवाई 20 जनवरी 2025 को होगी। कोर्ट का निर्णय सुनील सिंह के राजनीतिक भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। अगर कोर्ट ने बिहार विधान परिषद की निष्कासन की कार्रवाई को सही ठहराया, तो सुनील सिंह को एमएलसी की सीट गंवानी पड़ेगी। वहीं, अगर कोर्ट उनके पक्ष में फैसला देती है, तो उनकी एमएलसी कुर्सी बच सकती है।
**समाज और राजनीति में क्या असर होगा?**
इस पूरे विवाद का असर बिहार की राजनीति पर भी पड़ सकता है। राजद नेता सुनील सिंह की टिप्पणी और उनके खिलाफ की गई कार्रवाई ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। अगर यह मामला और बढ़ता है, तो इसका असर राजद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रिश्तों पर भी पड़ सकता है। इस समय बिहार में राजनीतिक माहौल गर्म है, खासकर आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर।
इस केस की अगली सुनवाई 20 जनवरी को होगी और उस दिन इस मामले का स्पष्ट फैसला आ सकता है। सभी की नजरें अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हैं।
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