"चीन ने धमकी से की नए साल की शुरुआत: ताइवान पर एकीकरण का कोई नहीं कर सकता विरोध!"

"चीन ने धमकी से की नए साल की शुरुआत: ताइवान पर एकीकरण का कोई नहीं कर सकता विरोध!"


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"चीन ने धमकी से की नए साल की शुरुआत: ताइवान पर एकीकरण का कोई नहीं कर सकता विरोध!"

नए साल की शुरुआत में चीन ने ताइवान को लेकर अपनी कड़ी धमकी दी है। राष्ट्रपति **शी जिनपिंग** ने 2025 के अपने संदेश में स्पष्ट किया कि **"ताइवान का चीन में एकीकरण"** कोई भी ताकत रोक नहीं सकती। यह बयान ताइवान के साथ चीन के बढ़ते तनाव के बीच आया है, जो राजनीतिक और सैन्य रूप से दोनों देशों के बीच गहरे मतभेदों को उजागर करता है। 

ताइवान पर बढ़ता दबाव

चीन और ताइवान के बीच कई सालों से विवाद है। चीन ताइवान को अपनी मुख्य भूमि का हिस्सा मानता है, जबकि ताइवान लोकतांत्रिक रूप से शासित एक स्वतंत्र देश है। शी जिनपिंग ने अपनी बातों में कहा कि **"ताइवान जलडमरूमध्य के दोनों किनारों पर रहने वाले हम चीनी एक ही परिवार के हैं, और कोई भी हमारी नातेदारी को खत्म नहीं कर सकता।"** उनका यह बयान दर्शाता है कि चीन ताइवान के खिलाफ अपनी सख्ती को और बढ़ाने के लिए तैयार है।

अर्थव्यवस्था में मंदी के बावजूद ठोस संदेश

चीन की अर्थव्यवस्था इस समय मंदी की ओर बढ़ रही है, और अमेरिकी राजनीति में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। फिर भी, शी ने अपने नए साल के संदेश में ताइवान को लेकर कोई कसर नहीं छोड़ी। वह इस मुद्दे को अपनी प्रमुख **सैन्य और राजनयिक पहल** के रूप में देख रहे हैं और वैश्विक शासन में सुधार के लिए चीन की जिम्मेदारी का भी हवाला दिया। 

'एक चीन' की नीति पर जोर

शी जिनपिंग ने एक बार फिर से **'एक चीन'** नीति की पुष्टि की, जिसमें ताइवान को चीन का अविभाज्य हिस्सा मानने की बात की गई। चीन ने कई बार ताइवान पर दबाव बनाने की कोशिश की है, जिससे ताइवान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग करने के प्रयासों को लेकर बीजिंग की आलोचना हो रही है। इसके साथ ही, चीन ने अपनी सैन्य गतिविधियों को भी तेज कर दिया है, जैसे कि ताइवान के पास अपने सैन्य विमान और जहाजों को भेजना।

क्या है भविष्य की दिशा?

चीन और ताइवान के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है, और शी जिनपिंग के बयान से यह साफ है कि चीन ताइवान के एकीकरण को अपनी प्रमुख राष्ट्रीय नीति के रूप में देखता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या दुनिया ताइवान के मुद्दे को शांतिपूर्ण ढंग से हल कर पाएगी या फिर यह क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति को और भी जटिल बना देगा?

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