ओवैसी की याचिका पर हिंदू संतों का तीखा पलटवार: 'आधुनिक जिन्ना' की तलाश?"
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"ओवैसी की याचिका पर हिंदू संतों का तीखा पलटवार: 'आधुनिक जिन्ना' की तलाश?"
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की, जिसमें उन्होंने देशभर में पूजा स्थल कानून लागू करने की मांग की। यह याचिका उनके वकील फुजैल अहमद अय्यूबी ने दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 17 फरवरी को सुनवाई करेगा।
इस याचिका पर हिंदू संतों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई। आचार्य प्रमोद कृष्णम ने ओवैसी को भारत के विभाजन की चाहत रखने वाला 'आधुनिक जिन्ना' करार दिया। उन्होंने कहा, "भारत के इतिहास में कई बार मंदिरों को तोड़ा गया है। बाबर, चंगेज खान, तैमूर लंग और औरंगजेब जैसे शासकों ने धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से मंदिरों को नष्ट किया।"
आचार्य प्रमोद ने यह भी कहा कि इन हमलों का उद्देश्य सिर्फ मस्जिदें बनाना नहीं था, बल्कि हिंदू धर्म से जुड़ी पवित्र जगहों पर हमला करना था। अयोध्या, मथुरा और संभल जैसे स्थानों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इन जगहों से भगवान राम और कल्कि अवतार की धार्मिक मान्यताएँ जुड़ी हैं।
आचार्य प्रमोद ने ओवैसी के बयान को विभाजनकारी बताया और कहा कि कभी-कभी ओवैसी में जिन्ना की आत्मा समा जाती है। उनका आरोप था कि ओवैसी का दृष्टिकोण भारत के सामूहिकता और एकता को कमजोर करता है।
उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व भारत को एकजुट करने में मददगार साबित हो रहा है, जैसे कि अजमेर शरीफ की दरगाह में चादर भेजना, जो अन्य धर्मों के प्रति सम्मान और सद्भाव का प्रतीक है।
आचार्य प्रमोद ने ओवैसी और अन्य धार्मिक नेताओं से अपील की कि वे इस मामले में अनावश्यक बयानबाजी से बचें। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे का समाधान ऐतिहासिक दस्तावेजों और कोर्ट की रिपोर्ट्स के आधार पर जल्द से जल्द किया जाना चाहिए, ताकि संभल में मंदिरों का नवीनीकरण किया जा सके और सांस्कृतिक महत्व को पुनः स्थापित किया जा सके।
यह मामला सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक एकता पर गहरी छाया डालने वाला है। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई 17 फरवरी को होनी है, और इस पर देशभर में चर्चाएँ गर्म हो रही हैं।
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