लालू-तेजस्वी के लिए कांग्रेस के कृष्णा अलावरु से डील करना होगा मुश्किल ! जानिए क्या हैं चुनौतियों..!  #laluyadav #nitishkumar #tejashwiyadav #latestnews #news #breakingnews #biharnews #biharpolitics

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"लालू-तेजस्वी के लिए कांग्रेस के कृष्णा अलावरु से डील करना होगा मुश्किल! जानिए किन चुनौतियों का करना पड़ सकता है सामना?....."


कांग्रेस दिल्ली चुनाव के बाद पूरी तरह से आक्रामक मूड में आ चुकी है और अब वह इंडिया गठबंधन के भीतर अपने दबदबे को साबित करने के लिए जोर-शोर से मैदान में उतरी है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार को कांग्रेस ने अपनी वजह से जोड़ा है, और पार्टी इस हार के बावजूद अब भी अपनी आक्रामक राजनीति से पीछे हटने के मूड में नहीं है। इस आक्रामक रवैये को देखकर इंडिया गठबंधन के बाकी दल कांग्रेस को लेकर चिंतित हैं और उसे सुरक्षात्मक खेलने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन कांग्रेस का आलाकमान अब रुकने का नाम नहीं ले रहा।


कांग्रेस ने अपनी रणनीति को मजबूत करने के लिए बिहार में भी अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। हाल ही में कांग्रेस ने कर्नाटक के कृष्णा अल्लावरु को बिहार कांग्रेस का प्रभारी बना दिया है। यह कदम पार्टी के आक्रामक रुख को और मजबूत करता है, क्योंकि बिहार कांग्रेस अब अगले विधानसभा चुनावों में 70 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना चुकी है। कांग्रेस ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह 70 सीटों से कम पर कोई समझौता नहीं करेगी। पार्टी को खुद पर भरोसा है और वह बिहार में राजद के बाद सबसे अहम दल बनने का दावा कर रही है। ऐसे में कांग्रेस का यह आक्रामक रवैया बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर मुश्किलें पैदा कर सकता है।


बिहार में कांग्रेस और राजद के बीच हमेशा से एक राजनीतिक संबंध रहा है, लेकिन अब जब कृष्णा अलावरु जैसे कर्नाटकी नेता को बिहार का प्रभारी बना दिया गया है, तो सवाल उठने लगे हैं कि क्या राजद, जो हमेशा कांग्रेस को अपने पीछे रखता आया है, अब अपने पुराने समीकरण को बनाए रख पाएगा। खासतौर पर यह देखने वाली बात होगी कि लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव जैसे हिंदी पट्टी के नेताओं के साथ कन्नड़ भाषी कृष्णा अलावरु कैसे गठबंधन में सीटों की डील को लेकर समझौता कर पाते हैं। यह स्थिति कांग्रेस और राजद के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर एक नई चुनौती पैदा कर सकती है, क्योंकि अब कांग्रेस ने साफ संकेत दिए हैं कि वह 70 सीटों से कम पर राजी नहीं होगी।


कांग्रेस का यह आक्रामक रुख सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि पार्टी अब पूरे इंडिया गठबंधन में अपने स्थान को लेकर भी सचेत है। कांग्रेस यह संदेश दे रही है कि वह बिहार में भी अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए किसी भी समझौते से पीछे नहीं हटेगी। राजद के लिए यह समस्या पैदा हो सकती है, क्योंकि पहले तक वह आसानी से बिहार कांग्रेस के नेताओं के साथ समझौते कर लिया करते थे, लेकिन अब नए प्रभारी कृष्णा अलावरु के आने से यह समीकरण बदल सकता है। हिंदी भाषी नेताओं से तालमेल बैठाना राजद के लिए मुश्किल हो सकता है, क्योंकि अलावरु की रणनीतियां अलग हो सकती हैं।


इसके अलावा, कृष्णा अलावरु के आने से बिहार में कांग्रेस को एक नई दिशा मिल सकती है। पार्टी नेतृत्व ने उन पर भरोसा जताया है और उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी है, जिससे साफ है कि कांग्रेस अब अपनी राजनीति में नए तरीके से कदम रखने जा रही है। हालांकि, यह देखा जाना है कि राजद, जो अब तक कांग्रेस को अपने इशारों पर चलाता था, किस तरह से इस नई स्थिति में काम करेगा। बिहार के राजनीतिक समीकरण में यह बदलाव आने वाला है, और कांग्रेस का आक्रामक रुख गठबंधन के भीतर एक नई राजनीतिक हलचल पैदा कर सकता है।


आखिरकार, कांग्रेस का यह आक्रामक रवैया और 70 सीटों की मांग, बिहार में अगले विधानसभा चुनावों में सीटों के बंटवारे को लेकर एक नया मोर्चा खोल सकता है। अगर कांग्रेस अपनी रणनीति पर कायम रहती है, तो यह राजद के लिए एक चुनौती बन सकता है, और बिहार की राजनीति में नई उठापटक का कारण बन सकता है।

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