बिहार में कांग्रेस का सियासी दांव:नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति से महागठबंधन में हलचल!

बिहार में कांग्रेस का सियासी दांव:नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति से महागठबंधन में हलचल!


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### **बिहार चुनाव 2025: कांग्रेस की नई सियासी चाल, लालू-एनडीए दोनों के लिए बढ़ी चुनौती!**  


बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। कांग्रेस ने इस बार एक नया सियासी दांव खेला है, जिससे न केवल एनडीए बल्कि इंडिया गठबंधन के सहयोगियों को भी चुनौती मिल सकती है। कांग्रेस ने दलित वोट बैंक को मजबूत करने के लिए बिहार प्रदेश अध्यक्ष के रूप में राजेश राम की नियुक्ति की है। यह फैसला सिर्फ संगठनात्मक बदलाव नहीं बल्कि एक बड़ा राजनीतिक संदेश भी है, जो बिहार की राजनीति में नए समीकरण बना सकता है।  


### **क्यों अहम है राजेश राम की नियुक्ति?**  

राजेश राम के पिता भी कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके हैं, जिससे उनका परिवार पार्टी में लंबे समय से सक्रिय रहा है। लेकिन इस नियुक्ति के पीछे असली मकसद बिहार में दलित राजनीति को नए सिरे से साधना है। बिहार की राजनीति में दलित वोटर्स हमेशा से अहम रहे हैं, खासतौर पर बक्सर, रोहतास, कैमूर, भोजपुर, अरवल, औरंगाबाद और गया जैसे जिलों में इनकी निर्णायक भूमिका रही है। यही वे इलाके हैं जहां पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में एनडीए को भारी नुकसान उठाना पड़ा था।  


### **दलित वोट बैंक पर कांग्रेस की नजर**  

2020 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों को देखें तो इन जिलों की 49 में से 41 सीटें आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने जीती थीं। कुटुंबा और राजपुर जैसी आरक्षित सीटों पर कांग्रेस की भी मजबूत पकड़ रही थी। अब कांग्रेस ने इस इलाके में अपनी पकड़ और मजबूत करने के लिए रणनीतिक कदम उठाया है।  


बीजेपी भी इस इलाके में दलित वोटर्स को लुभाने के लिए जीतन राम मांझी और चिराग पासवान जैसे नेताओं को आगे कर चुकी है। लोकसभा चुनाव में इस रणनीति को आंशिक सफलता मिली, लेकिन विधानसभा चुनाव में यह बहुत कारगर साबित नहीं हुई। दूसरी ओर, मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का भी इस इलाके में असर रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में उनका प्रभाव कम हुआ है। ऐसे में कांग्रेस अब बीएसपी के दलित वोट बैंक में भी सेंध लगाने की कोशिश कर रही है।  


### **लालू यादव और तेजस्वी के लिए भी बढ़ी मुश्किलें**  

आरजेडी हमेशा से दलित-मुस्लिम गठबंधन के सहारे चुनाव लड़ती आई है, लेकिन कांग्रेस की नई रणनीति से उसे भी नुकसान हो सकता है। राहुल गांधी ने पहले ही दलित सम्मेलन कर यह संकेत दिया था कि कांग्रेस अब इस वर्ग में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है। राजेश राम की नियुक्ति इसी योजना का हिस्सा है। इससे कांग्रेस न केवल एनडीए बल्कि अपने सहयोगियों के लिए भी चुनौती बन सकती है।  


### **क्या बदलेगी बिहार की राजनीति?**  

इस इलाके में करीब 25 फीसदी दलित वोटर्स हैं, और कांग्रेस अब इन्हें अपने पक्ष में करने की पूरी कोशिश कर रही है। अगर यह रणनीति सफल होती है तो यह बिहार की राजनीति में एक बड़ा बदलाव ला सकती है।  


अब बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस की इस रणनीति का जवाब एनडीए और आरजेडी किस तरह देंगे? क्या लालू यादव और तेजस्वी यादव कांग्रेस के इस कदम का कोई नया तोड़ निकाल पाएंगे? और क्या बीजेपी अपनी पुरानी रणनीति में बदलाव कर इस चुनौती का सामना करेगी? आने वाले महीनों में बिहार की राजनीति में कई बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।

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