बिहार में शिक्षा पर सियासी महाभारत! मुकेश सहनी की ललकार या चुनावी शतरंज?

बिहार में शिक्षा पर सियासी महाभारत! मुकेश सहनी की ललकार या चुनावी शतरंज?


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### **बिहार में शिक्षा पर सियासी महाभारत! मुकेश सहनी की ललकार या चुनावी शतरंज?**  

**पटना |** बिहार में शिक्षा की बदहाली कोई नई बात नहीं है, लेकिन चुनावी साल में यह मुद्दा फिर से सुर्खियों में आ गया है। विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख **मुकेश सहनी** ने बिहारवासियों से अपने बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता देने की अपील की है। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे शिक्षित होंगे, तो वे अपने अधिकार समझेंगे और उनके लिए संघर्ष भी करेंगे। लेकिन सवाल यह है कि यह अपील सच में शिक्षा सुधार के लिए है या फिर चुनावी बिसात पर बिछाया गया एक और नया मोहरा?  

### **मुकेश सहनी का बड़ा बयान – "हम भी गरीब के घर पैदा हुए थे!"**  

वैशाली जिले के भगवानपुर प्रखंड में आयोजित एक कार्यक्रम में पहुंचे **मुकेश सहनी** ने अपने संघर्षों को याद करते हुए बिहार के लोगों से अपील की कि वे अपने बच्चों को शिक्षित करें। उन्होंने कहा,  

*"हम भी गरीब के घर पैदा हुए थे, लेकिन हमने संघर्ष किया, आगे बढ़े, और अब अपने समाज के लिए लड़ रहे हैं। अगर बच्चे पढ़-लिख जाएंगे, तो वे अपना अधिकार पहचानेंगे और उसे पाने के लिए संघर्ष करेंगे।"

लेकिन सवाल यह है कि जब बिहार के स्कूलों में बच्चों को समय पर किताबें तक नहीं मिल पातीं, जब सरकारी स्कूलों की स्थिति बदहाल है, तो सिर्फ अपील करने से क्या शिक्षा व्यवस्था सुधर जाएगी?  

### **बिहार के सरकारी स्कूलों की हकीकत!**  

बिहार में सरकारी स्कूलों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। हर साल लाखों बच्चे बिना किताबों के ही सत्र की शुरुआत करते हैं। शिक्षा विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक –  

- बिहार में **2919 प्राथमिक विद्यालय** हैं, लेकिन इनमें से कई में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।  

- कक्षा **पहली से आठवीं तक के 58,725 बच्चों** का नया शैक्षिक सत्र अप्रैल से शुरू होगा, लेकिन अभी तक कई जिलों में किताबें नहीं पहुंची हैं।  

- शिक्षा विभाग के अनुसार, **मार्च के अंत तक परीक्षा प्रक्रिया पूरी होगी**, फिर नामांकन और अप्रैल में किताबें बांटी जाएंगी। लेकिन क्या समय पर सब बच्चों को किताबें मिल पाएंगी?  

### **चुनावी साल और शिक्षा पर राजनीति!**  

बिहार में **अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव** होने हैं। ऐसे में हर राजनीतिक दल जनता को लुभाने के लिए नए-नए मुद्दे उछाल रहा है। मुकेश सहनी भी शिक्षा को मुद्दा बनाकर अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या ये बयान सिर्फ जनता को लुभाने के लिए हैं, या फिर सच में शिक्षा को लेकर गंभीरता दिखाई जाएगी?  

### **क्या बिहार में शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी या फिर यह भी चुनावी मुद्दा बनकर रह जाएगा?**  

मुकेश सहनी की यह अपील जनता के दिलों को छूने वाली है, लेकिन बिहार की शिक्षा व्यवस्था की स्थिति इतनी खराब है कि सिर्फ भाषणों से इसे सुधारा नहीं जा सकता। हर साल लाखों बच्चे सरकारी स्कूलों में दाखिला तो लेते हैं, लेकिन पढ़ाई का स्तर गिरता ही जा रहा है।  

अब देखना यह है कि यह मुद्दा सिर्फ चुनाव तक सीमित रहेगा या फिर बिहार में शिक्षा सुधार को लेकर कोई ठोस कदम भी उठाए जाएंगे। बिहार के लोगों को केवल वादों से नहीं, बल्कि **एक ठोस योजना और ठोस क्रियान्वयन की जरूरत है!**

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