Lalu Yadav को Giriraj Singh की खुली चुनौती, "गांधी मैदान, फ्रेजर रोड कहीं भी, विकास पर हो जाए बहस"

Lalu Yadav को Giriraj Singh की खुली चुनौती, "गांधी मैदान, फ्रेजर रोड कहीं भी, विकास पर हो जाए बहस"


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बिहार की राजनीति इन दिनों तीखी बयानबाज़ियों और आरोप-प्रत्यारोपों से गरमाई हुई है। केंद्र की मोदी सरकार के 10 वर्षों के कार्यकाल के दौरान बिहार में हुए विकास कार्यों पर जहां एनडीए दावा ठोक रहा है, वहीं विपक्ष विशेषकर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) इन दावों को चुनावी जुमला करार दे रहा है। ऐसे ही एक बयान पर अब केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने लालू यादव को सीधे-सीधे चुनौती दे डाली है—विकास के मुद्दे पर खुले मंच पर बहस की चुनौती।


बेगूसराय में पत्रकारों से बातचीत करते हुए गिरिराज सिंह ने कहा, *“लालू यादव से मैं चुनौतीपूर्ण कहना चाहता हूं कि अगर आपको बिहार के विकास पर बहस करनी है तो भारतीय जनता पार्टी, एनडीए के किसी कार्यकर्ता से, जिसको आप कहें, आपके सामने गांधी मैदान, फ्रेजर रोड कहीं भी बहस कर सकते हैं।”* गिरिराज सिंह के इस बयान ने सियासी माहौल को और गर्म कर दिया है। उन्होंने आरजेडी के शासनकाल को 'लालटेन युग' बताते हुए आरोप लगाया कि उस दौर में बिहार में फिरौती और अपराध का बोलबाला था, जबकि आज के बिहार में बच्चों को बिजली मिल रही है, सड़कें बन रही हैं, और विकास दिखाई दे रहा है।


गौरतलब है कि यह बयान तेजस्वी यादव के उस तंज के बाद आया है, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के बिहार दौरे को 'जुमलेबाजी' का नाम दिया था। तेजस्वी ने कहा था कि चुनाव नजदीक आते ही भाजपा के बड़े नेता बिहार आते हैं और बड़े-बड़े वादे करते हैं, जो चुनाव के बाद केवल जुमला बनकर रह जाते हैं। यही नहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी बक्सर दौरे में पीएम मोदी और भाजपा पर झूठे वादे करने का आरोप लगाया था।


इन तमाम बयानों पर गिरिराज सिंह ने सख्त प्रतिक्रिया दी और कहा कि विपक्ष को विकास नहीं दिखता क्योंकि उनकी नजर में सच्चाई सिर्फ वोटबैंक की राजनीति से तय होती है। उन्होंने दावा किया कि पिछले दो दशकों में बिहार को नई दिशा मिली है, और नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए सरकार ने केंद्र के सहयोग से राज्य को विकास की पटरी पर लाकर खड़ा किया है।


अब सवाल यह उठता है कि क्या लालू यादव गिरिराज सिंह की इस चुनौती को स्वीकार करेंगे? क्या बिहार में कभी किसी सार्वजनिक मंच पर दोनों पक्षों के बीच विकास पर खुली बहस होगी? और अगर ऐसा होता है, तो यह भारतीय राजनीति के लिए एक सकारात्मक मिसाल बन सकती है, जहां मतभेदों को तर्क और तथ्यों के ज़रिए सुलझाया जाए।


फिलहाल, यह बयानबाज़ी बिहार में आगामी चुनावों की आहट की ओर इशारा कर रही है। गिरिराज सिंह का यह अंदाज़ न सिर्फ आक्रामक है, बल्कि रणनीतिक भी है—जिसमें विकास को केंद्र में रखकर विपक्ष को बैकफुट पर धकेलने की कोशिश साफ नजर आती है। बिहार की जनता अब इन बयानों के बीच सच्चाई को समझने की कोशिश कर रही है और आने वाले वक्त में मतदान के ज़रिए अपना फैसला भी सुनाएगी।


राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप आम बात है, लेकिन अगर यह बहस एक रचनात्मक दिशा में आगे बढ़े, तो यह राज्य और देश दोनों के लिए बेहतर होगा। अब निगाहें टिकी हैं लालू यादव और आरजेडी की अगली प्रतिक्रिया पर।

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