कारगिल के वीर: शहीद मनीष कुमार को नवादा में नम आंखों से अंतिम विदाई, दो माह पहले हुई थी शादी

कारगिल के वीर: शहीद मनीष कुमार को नवादा में नम आंखों से अंतिम विदाई, दो माह पहले हुई थी शादी


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**शहीद मनीष कुमार: देशभक्ति की मिसाल, नवादा के लाल को नम आंखों से अंतिम विदाई**

नवादा के छोटे से गांव पांडेगंगोट में उस दिन सन्नाटा पसरा था, लेकिन दिलों में एक अजीब सी गर्व और ग़म की लहर भी थी। कारगिल में तैनात आर्मी मेडिकल कोर के जवान मनीष कुमार ऑपरेशन रक्षक के दौरान शहीद हो गए। महज 27 साल की उम्र में देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले मनीष की अंतिम यात्रा ने पूरे जिले को भावुक कर दिया। जिस मनीष ने दो महीने पहले ही शादी की थी, उसकी विदाई अब तिरंगे में लिपटे पार्थिव शरीर के साथ हुई

मनीष कुमार की ड्यूटी जम्मू-कश्मीर के कारगिल स्थित एमएच अस्पताल में थी। 14 मई की सुबह उन्हें बेहोशी की हालत में अस्पताल लाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। मनीष पूरी तरह स्वस्थ और ड्यूटी के लिए फिट थे। उनकी अचानक हुई शहादत ने हर किसी को चौंका दिया।

शनिवार को जब उनका पार्थिव शरीर नवादा पहुंचा, तो हजारों लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़े। पुलिस लाइन से लेकर उनके गांव तक लगभग 40 किलोमीटर लंबी शव यात्रा निकाली गई। लोग बाइक और गाड़ियों के साथ जय हिंद और भारत माता की जय के नारों से आसमान गूंजा रहे थे। घर पहुंचने पर छोटे भाई सनी कुमार ने उन्हें मुखाग्नि दी और सेना की टुकड़ी ने उन्हें अंतिम सलामी दी

शहीद की पत्नी खुशबू कुमारी ने रोते हुए कहा कि उन्हें अपने पति की शहादत पर गर्व है, लेकिन उनका सहारा चला गया। उन्होंने यह भी कहा कि अब वे भी देश की सेवा करना चाहती हैं। वहीं, मां सुशीला देवी ने कहा कि बेटे ने दूध की लाज रखी है। यह शब्द सुनकर हर आंख नम हो गई।

मनीष का परिवार पहले से ही देशभक्ति की मिसाल है। उनके परिवार में चार बेटे हैं, जिनमें से तीन सेना में कार्यरत हैं। शहादत की खबर मां के मोबाइल पर आई थी और उसके बाद पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई। लेकिन साथ ही यह गर्व की बात भी रही कि इस गांव ने देश को एक सच्चा सपूत दिया।

स्थानीय लोगों और नेताओं ने शहीद को श्रद्धांजलि दी। गांव की सड़कों पर फूल बिछाए गए। स्थानीय मुखिया दीपक कुमार ने कहा कि मनीष जैसे वीरों की बदौलत हम आज़ादी की सांस ले रहे हैं।

शहीद मनीष कुमार की शहादत केवल एक व्यक्तिगत क्षति नहीं, बल्कि राष्ट्र की सामूहिक पीड़ा और गौरव का प्रतीक बन गई है। उनकी यादें, उनके बलिदान और उनकी मुस्कान हमेशा हमारे दिलों में ज़िंदा रहेंगी।

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