बिहार में दाखिल-खारिज के मामलों पर सख्त DM, लापरवाह CO पर गिर सकती है गाज
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**बिहार में दाखिल-खारिज मामलों को लेकर बड़ा कदम, 75 दिन से ज्यादा लंबित केसों पर CO की बढ़ी टेंशन**
बिहार में ज़मीन सर्वे का काम ज़ोरों पर है। सरकार चाहती है कि 2026 तक राज्य भर की हर ज़मीन का डिजिटल रिकॉर्ड तैयार हो जाए। लेकिन इस बीच दाखिल-खारिज यानी म्यूटेशन मामलों में हो रही देरी ने प्रशासन की चिंता बढ़ा दी है। पटना जिले में ऐसे 14,000 से ज्यादा मामले अब भी लंबित हैं, जिनमें से करीब 1,700 मामले 75 दिनों से भी ज्यादा समय से अटके हुए हैं। अब प्रशासन ने इन मामलों में लापरवाही बरतने वाले सर्किल ऑफिसरों (CO) पर कार्रवाई का संकेत दिया है।
**DM का अल्टीमेटम: इस महीने के अंत तक निपटाएं केस**
पटना के जिलाधिकारी डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि 75 दिनों से अधिक समय से लंबित दाखिल-खारिज मामलों को हर हाल में मई के अंत तक निपटाना होगा। उन्होंने कहा कि यदि तय समयसीमा में मामले सुलझाए नहीं गए, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की जाएगी। यह आदेश सिर्फ दाखिल-खारिज तक सीमित नहीं है, बल्कि भूमि मापी, अतिक्रमण और परिमार्जन जैसे मामलों पर भी लागू होगा।
**इन अंचलों में सबसे ज्यादा लापरवाही**
सबसे ज्यादा मामले संपतचक (636), बिहटा (499), दीदारगंज (156), धनरूआ (105) और नौबतपुर (82) अंचलों में लंबित हैं। राजस्व मामलों की समीक्षा बैठक में इन अंचलों के CO को विशेष चेतावनी दी गई है कि यदि समय पर काम पूरा नहीं हुआ, तो विभागीय कार्रवाई तय मानी जाएगी।
**नियमों के अनुसार तय है समयसीमा**
सरकारी नियमों के अनुसार दाखिल-खारिज की प्रक्रिया अधिकतम 35 दिनों में पूरी हो जानी चाहिए। यदि कोई आपत्ति दर्ज की जाती है, तब भी यह प्रक्रिया 75 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए। लेकिन कई अंचलों में यह समयसीमा लांघ दी गई है, जिससे जनता को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
**डिजिटल सर्वे का मकसद और चुनौती**
बिहार सरकार पूरे राज्य में ज़मीन का डिजिटल सर्वे करवा रही है ताकि ज़मीन संबंधी विवादों को रोका जा सके और प्रत्येक ज़मीन के रिकॉर्ड को पारदर्शी बनाया जा सके। 2026 तक यह काम पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन दाखिल-खारिज में हो रही देरी और अधिकारियों की लापरवाही इस प्रक्रिया को बाधित कर रही है।
**जनता को भी रहना होगा सजग**
प्रशासन जहां कार्रवाई की तैयारी में है, वहीं आम लोगों को भी अपने हक के प्रति सजग होने की जरूरत है। यदि किसी व्यक्ति का दाखिल-खारिज मामला लंबे समय से लंबित है, तो वह अपने संबंधित अंचल कार्यालय से जानकारी ले सकता है और कार्रवाई की मांग कर सकता है।
**निष्कर्ष**
बिहार में ज़मीन सर्वे को लेकर सरकार गंभीर है, लेकिन कुछ अधिकारियों की लापरवाही इस पूरी प्रक्रिया को कमजोर बना रही है। अब देखना होगा कि पटना डीएम के इस सख्त रुख के बाद बाकी जिलों के प्रशासन भी सतर्क होते हैं या नहीं। यदि समय रहते सभी विभाग चुस्ती से काम करें, तो बिहार का यह बड़ा सपना—संपत्ति रिकॉर्ड की पारदर्शिता—जल्द ही हकीकत बन सकता है।
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